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Her Life

परिवार एक कविता हस्त लिखित माताजी वर्ष २००६-२००७

July 2, 2016

                                     परिवार

परिवार बना डाला हमने,

निरबुधि रही, कुक्ष भी न पता,

परिवार बना डाला हमने,

जिस वक्त बनी लड़की से बहू,

कुछ पता नहीं था आगे का,

कुछ रास्ता चलना सीखा न खा,

परिवार बना डाला हमने,

ईश्वर का लेकर नाम सही,

परिवार बना डाला हमने,

मेरे द्वारा ईश्वर से कुछ राह समझ ना पाई मैं ,

परिवार बना डाला हमने,

कुछ ध्यान न था, कुछ बुद्धि न थी,

चलते चलते थक जाती थी,

फिर रुक कर कुछ सोच समझ,

संघर्ष बढ़ा कुछ जीवन का,

जिसमें एक निशा आई,

पर फिर सुधीर की डोरी में,

बॉधा सबको पर कुछ न हुअा,

फिर मधू की एक डोरी में बाँधा सबको,

अरविंद नाम की डोरी थी,

जिससे आगे कुछ और हुआ,

आया अखिलेश सामने जब,

जब अजय हुआ कुछ सोच समझ,

आई आगे उन सबके मैं,

कीचड़ में फँसती जाती थी,

फिर कीचड़ में नीरज आ धमका,

पर समझ बहुत ही धुँधली थी,

मैं आगे कुछ चलने को हुई,

पर कीचड़ में फँसती ही गई,

आगे का रास्ता उज्जवल था,

पर मेरी बुद्धि समझ न सकी,

आगे समाज का घेरा था,

घेरे में अकेली थी कुछ क्या कहती,

फँसती ही गई पर समझ मेरी अकेली,

जैसे तैसे मैं निशा में फँस गई अकेली,

ईश्वर ने चक्कर में डाल दिया,

पर चक्कर इतना भारी था,

कहने सुनने की सोच न थी,

कुछ समाज को मैं समझ न सकी,

उलटा फँसती गई निशा के अंधेरे में,

पर आगे आया कुछ जिसने सुधार का काम किया,

फिर घर में सुधीर को बॉधा ढाढ़स आया,

पर आगे आगे अरविंद चले कुछ कर सहम गई,

पर रास्ता कठिन बहुत आया,

आगे अखिलेश को आता देखा ,

उनको भी मैंने फाँस दिया,

चक्कर में आगे देखा, कुछ सहम गई,

पर जया नाम की लीला में, मैं सोचा कुछ कह न सकी,

जब उसने मुझे हार दे दी,

कुछ पर कुछ सहम गई,

ईश्वर ने सब कुछ काम किया,

आगे रास्ता चलती ही गई,

पर मधू नाम से सोच समझ आगे दूर निकल आई,

आगे बुद्धि कहा जाये, नीरज कीचड़ से निकल गया,

हम दूर खड़ी कुछ सोच रही,

पर आगे मैं अब रुक गई,

परिवार बना डाला हमने,

आई ईश्वर के धंधे में,

मैं निरबुधि कुछ समझ नहीं,

चुपके से घर पर बैठ गई,

आगे चलने का साहस,

सब हमने यही समाप्त किया,

जीवन के आगे क्या होगा,

मैं अब समझ न सकी,

परिवार बना डाला हमने,

ईश्वर सबका कल्याण,

बस एक यही है अभिलाषा है,

अपने को तो मैं भूल गई,

मैं दुरुबुधि कुछ क्या जाने,

ईश्वर ही एक सहारा है,

परिवार बना डाला हमने,

बस एक यही अभिलाषा है।

आगे चलता रहे पर मुझे सोचकर,

भूल जाय और मेहनत से कामकरे,

न पैसा है न बुद्धि है बस,

सेवा भाव का सहारा है,

परिवार बना डाला हमने।

जब अजय ध्यान में आता है,

उसका जीवन क्या जीवन था,

बस दिल मसोस रह जाता है,

एक बाग़ बना पर बन न सका,

एसी एक ऑधी है, जो हरे भरे कुछ साहस से हमसे,

उसने दूर किया जब अजय याद आ जाता,

जीवन की हार मानती हू,

मैं मंद बुद्धि कुछ कर न सकी,

या हार हमारी,

परिवार बना डाला हमने।

ईश्वर से छमा चाहती हू,

परिवार हमारा सहारा है,

उस पर चलते ही सी गई,

आगे जीवन की नैया है,

जब भी आगे निकलूँ मैं,

मेरे अपराधों को छमा करो,

ईश्वर से यही सहारा है,

यदि ईश्वर हम पर दया करे,

कुछ सोच समझ कर चलती रहू,

आगे के बच्चे आगे बढ़े,

मैं कम बुद्धि की नारी हू,

सब काम बने जग में फिर हो नेक काम,

जिससे कुछ भारत माता का कल्याण हो,

कुछ काम बने कुछ नाम रहे।

#Hindi Pride