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क्रिकेट की दीवानगी

July 16, 2021
कुछ लोग कहते हैं की "Cricket is my religion and Sachin is my God" पर अगर किसी व्यक्ति ने यह कथन सच में जिया है तो वो हैं श्री अतुल गुप्ता।  क्रिकेट के दीवानेपन की उनकी एक कहानी तो बहुत ही प्रसिद्धहै।  सन 1983 में 25 जून के दिन जब भारत की क्रिकेट टीम वर्ल्ड कप का फाइनल खेल रही थी, ठीक उसी समय इनका विवाह हो रहा था । यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की उस समय इस क्रिकेट प्रेमी का मन अपनी शादी में नहीं परन्तु पूरी तरह से वर्ल्ड कप में था । हर फेरे के बाद मैच का स्कोर पूछने का सिलसिला चलता रहा और सातवा फेरा खत्म होते-होते वेस्ट इंडीज का अंतिम विकेट भी गिर गया । शादी के जश्न में भारत की जीत के जश्न ने चार चाँद लगा दिए ।

बस एक इतनी सी बात है, ज़िंदा हूँ जब तक दोस्त साथ हैं

July 15, 2021
यूं तो जीवन में हर इंसान बहुत सारे मित्र बनता है- कुछ स्कूल में, कुछ मोहल्ले पड़ोस में, कुछ कॉलेज में तो कुछ ऑफिस में।  कुछ मित्रों के साथ इंसान बचपन में खेलता है, स्कूल में पढता है तो कुछ के साथ घूमता-फिरता है और कुछ के साथ काम करता है।  हर मित्र का जीवन में एक ख़ास स्थान होता है और इनमे से कुछ से तो पूरे जीवन मित्रता रहती है।  कभी ऐसा भी हो जाता है की कुछ मित्रों का जीवन इस तरह से जुड़ जाता है कि वो जीवन के अंत समय तक साथ रहते हैं और साथ-साथ ही संसार को अलविदा कहते हैं।  ऐसे ही कुछ मित्र पापा के जीवन में भी थे और नियति का खेल कुछ ऐसा है की ५ घनिष्ट मित्र - श्री अतुल कुमार गुप्ता, श्री संजय स्वरुप बंसल, श्री नसीब पठान, श्री चेतन चौहान और श्री अजय गुप्ता का निधन कुछ ही अंतराल में हो गया, इनमें से चार तो कोरोना महामारी के कारण असमय ही इस संसार को अलविदा कह कर चले गए।  ऐसा उदाहरण तो संसार में मुश्किल से ही मिलेगा जहाँ इतने सारे करीबी मित्र संसार से साथ-साथ ही चले गए।  यह अत्यंत दुःख का विषय है परन्तु इस मित्रता के बारे में सोच कर एक सुख का अनुभव भी होता है, खासकर जब इनके किस्से याद आते हैं । ऐसे ही कुछ किस्से आपके साथ साझा करने का यह प्रयास है जिससे आप भी इन मित्रों की कहानी पढ़कर हर्ष का अनुभव कर सकें।  
१) श्री अजय गुप्ता - 'शेरों वाली कोठी वाले अज्जू बाबू " - यह वाक्य मैंने अपने जीवन में इतनी बार सुना है की अपने अंत समय तक यह मुझे याद रहेगा।  पापा के परम मित्र जिन्हे वह अज्जू भाई साहब कहते थे, वो पापा से करीब ५ साल बड़े थे । वह एक ऐसे व्यक्ति थे जो जीवन को खुल कर जीना अच्छी तरह से जानते थे, जब किसी पार्टी में डांस करते थे तो मुँह से यही वाक्य निकलता था कि यह तो बिजनौर के देव आनंद हैं।  हर समय अपने दोस्तों के काम आने वाले अज्जू ताऊजी और उनकी पत्नी वीना ताईजी पापा के जाने के २ सप्ताह बाद ही कोरोना की भेंट चढ़ गए। पापा और उनका साथ बहुत लम्बा था, दोनों से मिलकर लायंस क्लब बिजनौर सिटी की स्थापना करी थी, अज्जू ताऊजी क्लब के पहले अध्यक्ष और पापा पहले सेक्रेटरी बने थे। बहुत वर्ष बाद दोनों ने उस क्लब को पुनर्स्थापित करा और एक बार फिर दोनों क्रमशय अधयक्ष और सेक्रेटरी बने। कुछ ऐसा सम्बन्ध था दोनों का कि इतने वर्ष का अंतराल भी कुछ नहीं बदल सका।  
२) श्री संजय स्वरुप बंसल - पापा के एक और घनिष्ट मित्र जो हमारे परिवार के ही सदस्य थे, पापा से कुछ छोटे ज़रूर थे परन्तु उनका देहांत पापा से कुछ वर्ष पूर्व कैंसर से लड़ते हुए हो गया।  इन दोनों की मित्रता भी बहुत पुरानी थी और दोनों ने एक दूसरे का सुख और दुःख में हमेशा साथ निभाया। चाहे वो दादी कि अचानक तबियत बिगड़ने पर दिल्ली तक लेकर जाना हो, या फिर हमारे घर में एक क्रिमिनल के घुस जाने पर तुरंत घर में अपने बॉडीगार्ड के साथ आकर  उसको पकड़ना हो, हमेशा वो परेशानी के समय सबसे पहले खड़े मिलते थे।  
३) श्री नसीब पठान - पठान चाचा बिजनौर के हर व्यक्ति के लिए एक ऐसा उदहारण हैं  कि कैसे एक इंसान एक छोटे से शहर में एक साधारण घर में जन्म लेकर भी आकाश की बुलंदियों को छू सकता है।  शायद ही बिजनौर के किसी और व्यक्ति ने राजनीति में इतना ऊँचा मुकाम हासिल करा होगा।  उनकी गिनती कांग्रेस के देश के सर्वाधिक शक्तिशाली नेताओं में होती थी।  उनके दो किस्से मुझे हमेशा याद आते हैं - एक तो यह कि जब उन्हें पता चला की हम सब तिरुपति मंदिर दर्शन के लिए जाने वाले हैं तो उन्होंने घर आकर ५०० का नोट देकर कहा की मेरी तरफ से मंदिर में चढ़ा दीजियेगा, धार्मिक एकता के ऐसे उदाहरण मुश्किल से ही मिलते हैं।  दूसरा किस्सा यह है- उन्हें पता था कि पापा को फ़िल्मी सितारों से मिलने का बहुत शौक था इसलिए जब महेश भट्ट और इमरान हाश्मी चुनाव प्रचार के लिए आये तो पठान चाचा पापा को उन दोनों से मिलवाने सीधे उनके हेलीकाप्टर तक ले गए।  दोनों मित्र अलग अलग राजनैतिक विचारधारा से होकर भी एक दूसरे के बेहद करीब थे।  
४) श्री चेतन चौहान - भारत के पूर्व सलामी बल्लेबाज और अमरोहा से कई बार सांसद रहे चेतन चौहान पापा के एक करीबी मित्र थे।  दोनों का सम्बन्ध कुछ ऐसा था की एक बार चेतन अंकल रात को तकरीबन १० बजे अचानक घर आये और आकर सीधे मम्मी से कहा की आज यहीं खाना खाएंगे।  मम्मी ने तुरंत खाने का इंतज़ाम करा और उनको एवं उनके एक बस भरकर साथ में आये समर्थकों को खाना खिलाया, वह सभी मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने के लिए कश्मीर जा रहे थे और रास्ते में कुछ देर के लिए रुक गए थे ।  उस रात भगवान की लीला कुछ ऐसी हुई उनके साथ के बाकी लोग जो खाने के लिए नहीं रुके, उनकी आतंकवादियों ने रास्ते में हत्या कर दी।  चेतन अंकल हमेशा इस बाद को याद करके पापा से कहते थे की उस रात आपके खाने ने मुझे जीवनदान दे दिया।  दुर्भाग्यवश पीछे साल कोरोना की पहली वेव ने उनका जीवन असमय ही समाप्त कर दिया।  

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