ForeverMissed
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यह हम सबके आदरणीय  स्व. दिलीप दादा से जुडी कुछ यादों का संग्रह है जिसमें शामिल है उनसे जुड़े हुए हमारे संस्मरण, फोटो, विडियो और समय-समय पर उनके द्वारा कहे गये जीवनोपयोगी उद्गार |
यह  हमारी सबकी  भावपूर्ण श्रद्धांजलियों  का संग्रहणीय संग्रह है | स्व. दादा हम सभी के दिल में बसते हैं और हमेशा बसे रहेंगे | 

आपसे विशेष निवेदन है कि आप इस वैबसाइट की लिंक उन सबके साथ शेअर करें जो किसी भी समय या कभी-न-कभी  दादा के साथ किसी न किसी रूप में जुड़े रहे हैं | 

दादा से जुड़े हुए संस्मरण, फोटो, विडीओ या उनके द्वारा कहे गए उद्गार आप कभी भी मुझे मेरे Whatsapp number - 9425067214 पर भेज सकते हैं  या मुझे radhitri.u@gmail.com पर मेल भी  कर सकते हैं |

इस पेज पर नीचे आप (Leave a Tribute) बॉक्स में  स्व. दादा को अपनी श्रद्धांजलि भी समर्पित कर सकते हैं |

यह वैबसाइट हमें श्री अनिरूध भार्गव के सौजन्य से प्राप्त हुई है | हम सब उनको हृदय की गहराईयों से धन्यवाद देते हैं |

आपका अपना 
आर एस वर्मा 
April 27, 2021
April 27, 2021
Great Mentor and my Favourite Guru

Always encouraged to pursue an all round development in life

Made difficult tasks easy by helping me to break them down into smaller achievable targets

Praised you in front of all to boost your confidence and told you to improve by spending 1:1 time

Taught small things which have made a world of difference in my life

अच्छे से हाइट और पोस्चर को रखना , सुबह काग आसान में पानी पीना , पढाई और खेल पर दोनों पर ध्यान देना (खेल पर पढाई से ज्यादा ) और दिल लगाकर संगीत सीखना सब और अच्छे से करूँगा

Will take your legacy forward and try to imbibe all goodness you taught.

Thank you Dada! 

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Thank you Dada! 
His Life

दादा का बचपन से बिदाई तक का सफर - (आर एस वर्मा द्वारा) (आज दिनांक 6.9.21 तक अपडेट की गई

September 3, 2021
(2.9.21 का अपलोड)
दादा का सफर बचपन से बिदाई तक


1.बचपन और परिवार: स्व. दिलीप दास (दादा) का जन्म 22 फरवरी, 1936 को छावनी, इंदौर में संयोगितागंज स्कूल नं 2 के सामने स्थित दाससंयुक्त परिवार के भवन में हुआ था | यह भवन आज भी जर्जर अवस्था में खड़ा हुआ है, परंतु किसी और के द्वारा खरीद लिया गया है | उनके पिता का नाम स्व. शिरीष चन्द्र दास था और माँ का नाम स्व. मोनीमाला दास था | उनके पिताजी नगर निगम, इंदौर में कमिश्नर के पद पर कार्यरत थे | उनकी माँ कोलकाता के एक धनी और संभ्रांत परिवार से थी | 

दादा जब मात्र 14 वर्ष के थे, तभी उनके पिता का स्वर्गवास हो गया | उस समय उनके परिवार में एक बड़ी और 4 छोटी बहनें थी और दो छोटे भाई थे | एक भाई तो माँ की गोद में ही था | यहीं से दादा काअपने जीवन केसाथ संघर्ष शुरू हुआ|

उनके ऊपर सात भाई बहन और माँ की ज़िम्मेदारी आन पड़ी | उनके सामने सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी यह आ गई कि संयुक्त परिवार में रहते हुए अपने भाई-बहन की पढ़ाई आगे कैसे जारी रखें और साथ उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों के शोषण से कैसे बचाएं |

दादा स्वयं मात्र 14 वर्ष के ही थे | उनकी सबसे बड़ी बहन डॉली और दादा से छोटी बहन मीरा और रूबी कृष्णापुरा, इंदौर स्थित एक नारी निकेतन केंद्र में सिलाई-बुनाई का काम करने भी जाती थी |

2.दादा का गोद जाना एवं शादी:
 दादा के मामा नवीन चन्द्र दत्ता और मामी सुशीला बाला दत्ता, 5/1, पारसी मोहला में रहते थे | उनका पारसी मोहल्ला में एक और मकान भी था | उनको कोई संतान नहीं थी | दादा मामा को दादु और मामी को दादी (ठम्मा) बोलते थे | मामा एक रिटायर्ड टीचर थे, बाद में उन्हें आँखों से दिखना बंद हो गया था |

दादी एक दिन दादा के छवानी वाले घर गई और दादा को अपने साथ यह बोलते हुए ले आई कि इसे मैं पालुंगी और पढ़ाऊंगी | इस तरह एक प्रकार से उन्होंने दादा को गोद ले लिया था | दादा दिन में छवानी स्थित घर चले जाते और रात में दादु के घर आ जाते थे | उनकी दादी बहुत सख्त स्वभाव की थी और उनका अनुशासन भी बहुत कठोर था |

दादा की अनुशासन की शिक्षा दादी (ठम्मा) से ही शुरू हुई थी | एक बार तो दादी ने उन्हें चूल्हे की जलती हुई लकड़ी से जला भी दिया, क्योंकि दादा ने उनकी कुछ बात नहीं मानी थी | दादा को वे कई बार एक कमरे में अकेले घंटो तक बंद कर देती थी और कहती थी चुप-चाप बैठा रह यहाँ | दादा अकेले घंटों उस बंद कमरे में बैठे रहते और कुछ न कुछ सोचते रहते थे | इससे दादा की एकाग्रता (concentration) भी विकसित होने लगी और आगे चलकर यह सजा उनके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई | कई बार दादा शैतान बच्चों के लिए पैरेंट्स को सलाह भी देते थे कि इसे अकेले एक कमरे में बंद कर दिया करो | फरीदा के बेटे मुफ़ी को भी दादा कई बार अपने घर के एक कमरे में एकांत में अकेला बैठा देते थे |

एक बार दादी (ठम्मा) बीमार हुई और उन्हें महाराजा यशवंतराव हॉस्पिटल (MYH) में भर्ती करना पड़ा | हॉस्पिटल की लिफ्ट खराब थी और दादी को

5 वीं मंज़िल पर भर्ती किया गया था | दादा ने आव देखा न ताव और दादी को अपनी गोद में उठाया और 5 वीं मंज़िल पर लेकर आ गए | वहाँ उपस्थित सभी लोग देखते ही रहे गए |

(दिनांक 3.9.21 का अपडेट) 

1965 में दादा का विवाह बनारस में शिबानी दास से हुआ | 1971 में उनके पुत्र जॉयदेब दास और 1972 में उनकी पुत्री मंदिरा का जन्म हुआ | दादा की दो पोतियाँ (grand-daughters), मिशिका दास और ईशिता दास हैं और पोता (grand-son) ओरित्रदास है |

शादी के बाद दादा जब बनारस अपनी ससुराल में गए हुए थे, तब पत्नी शिबानी दास के साथ गंगा किनारे स्थित महादेव ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने गए | वहाँ गर्भग्रह में बहुत ज्यादा भीड़ थी, जिसमें कई महिलाएं भी शामिल
थी | इस कारण दादा ज्योतिर्लिंग तक जाने में संकोच कर रहे थे और भीड़ से घबरा भी रहे थे | इतने में भाभी ने अचानक से दादा का हाथ पकड़ा और भीड़ को चीरते हुए न सिर्फ सीधे ज्योतिर्लिंग तक पहुँच गई बल्कि दादा के हाथों पूजा भी करवाई | यह किस्सा कई बार दादा भाभी (शिबानी दास) की तारीफ करते हुए बयान करते थे |

दादा अपनी बहनों से बहुत प्यार करते थे और उनका पूरा-पूरा ख्याल भी रखते थे | एक बार किसी लड़के ने दादा की एक बहन को कुछ भला-बुरा कह दिया, उन्होंने आकर दादा को बताया, तो दादा ने कहा ठीक है तू मुझे दूर से ही उस लड़के को बता देना | एक दिन बहन ने दादा को उस लड़के को बता दिया | दादा अब उस पर नज़र रखने लगे और एक दिन जब वह साइकल पर जा रहा था, तो उसको लाल बहदुर शास्त्री रेल ओवर ब्रिज पर पकड़ा और उसकी साइकल को अपने दोनों हाथों से खिलौने की तरह तोड़-मरोड़कर उसके हाथों मे दे दी और कहा आगे से शिकायत मिली तो समझ ले जान से हाथ धो बैठेगा | लोग आश्चर्य से यह सब देखते रहे | आप अंदाज लगा सकते हैं कि दादा कितने शक्तिशाली थे, परंतु उन्होंने अपनी इस शक्ति का कभी दुरुपयोग नहीं किया | इसका उपयोग वह केवल डराने के लिए ही करते थे, जिसका आधार था एक विषधर सर्प की कहानी जो रामकृष्ण परमहंस बताया करते थे |

ऐसे ही एक बार दादी (ठम्मा) को किसी लड़के ने साइकल से टक्कर मार दी, जिससे उन्हे चोट आई | दादा ने उस लड़के की पिटाई कर उसे एक उथली हुईगटर में डाल दिया और चेतावनी दी की आगे से किसी भी वृद्धा के साथ ऐसी गल्ती या हरकत मत करना |

3.बंगाली क्लब में जिम की शुरुवात: उस समय के इंदौर के प्रसिद्ध डॉ एस के मुखर्जी (पद्मश्री और एम जी एम मेडिकल कॉलेज, इंदौर के प्रथम बैच के एम बी बी एस डॉक्टर) दादा के पिताजी के बहुत अच्छे दोस्तों में से थे और दादा के पारसी मोहल्ला स्थित घर के पास ही रहते थे | इंदौर के ही प्रसिद्द होमियोपैथ डॉक्टर के. एल. मुखर्जी भी पारसी मोहल्ला स्थित घर के पास रहते थे | जब दादा 18 वर्ष के थे, तब डॉ एस के मुखर्जी (एलोपैथ) और डॉ भट्टाचारजी और कुछ अन्य गणमान्य बंगालियों ने दादा को एक दिन बुलाया और कहा कि दिलीप तुम और तुम्हारे कुछ दोस्त मिलकर बंगाली क्लब में अपना एक जिम शुरू करो, परंतु हम तुम्हें केवल जगह देंगे, बाकी दूसरी सारी व्यवस्थाएँ तुम्हें स्वयं ही जुटाना पड़ेगी, हम तुम्हें इसके लिए कोई आर्थिक सहायता भी नहीं दे सकेंगे |

तब दादा ने क्लब में स्थित पुराने भवन में (जिसे तोड़कर, अब एक नया भवन बनाया जा रहा है |) अपने चार और दोस्तों (शामल, सोची, कोमल और काली) के साथ मिलकर बंगाली क्लब में अपनी एक्सरसाईजेस करना सन 1954 में 18 साले की उम्र में शुरू किया |

जिम के लिए व्यवस्थाएं कैसे जुटाई जाएँ, यह दादा के सामने एक बड़ी समस्या थी | दादा ने अपनी माँ के गहने बैंक में गिरवी रखकर लोन लिया और जो पैसे मिले उससे क्लब के लिए इन्स्ट्रुमेंटस बनाने का निश्चय किया | दादा ने यह सोचा था की पैसों की व्यवस्था होते ही वे बैंक का ऋण चुकाकर माँ के गहने वापस माँ को लौटा देंगे | परंतु पैसों की तंगी के चलते दादा निर्धारित अवधि में बैंक का ऋण नहीं चुका सके | बैंक ने बिना दादा को नोटिस दिए गिरवी रखे गहने बेच दिए, जिसका पता दादा को बहुत बाद में चला, जब वे ऋण चुकाने के लिए गए | दादा को पूरी जिंदगी इस बात का अफसोस रहा कि वे माँ के गहने उन्हें वापस नहीं कर सके |

पैसों के अभाव को ध्यान में रखते हुए दादा ने इन्स्ट्रूमेंट्स स्वयं ही बनाने का निर्णय लिया | इस उद्धेश्य से दादा ने मिल एरिया स्थित कल्याण मिल के सामने एक फाउंडरी में कुछ समय तक नौकरी कर फोरमैन देवस्थली साहब से ढलाई का काम सीखा | क्लब में ही फरनेस लगाकर कई इन्स्ट्रुमेंटस दादा ने अपने हाथो से ढाले, वो इन्स्ट्रूमेंट्स आज भी क्लब में मौजूद हैं | इन्स्ट्रूमेंट्स की फिनिशिंग दादा ने स्वयं अपने हाथों से लेथ मशीन पर की थी |

दादा 1954 से लेकर अंत समय 2021 तक लगातार 67 वर्ष बंगाली क्लब से जुड़े रहे | बंगाली क्लब में उनकी आत्मा बसती थी और वे क्लब की आत्मा थे | दादा का क्लब में अनुशासन और नियमितता अनुसरण करने लायक थी | कई बार दादा जब कोलकाता से क्षिप्रा एक्सप्रेस से 36-40 घंटे की यात्रा पूरी कर रात करीब 3.00 बजे पहुँचते थे, तो घर आते ही फ्रेश होकर, बिना कोई आराम किए सीधे क्लब में अपनी एक्सरसाईजेस करने आ जाते थे |

श्री नरेंद्र गर्ग और नरिंदर (पवन के पिता जी और विक्की भैया के ससुर) भी दादा के साथ सुबह क्लब 4.00 बजे आते थे | एक बार भयंकर बारिश हुई और पुराने नवलखा पुल के ऊपर से पानी बह रहा था | दादा पुराना पुल पार कर ही अपने घर से क्लब आते थे | गर्ग साहब ने सोचा, आज पुल पर से पानी बह रहा है, तो दादा नहीं आ सकेंगे | गर्ग साहब नेमिनगर से आते थे, तो उन्हें तो कोई दिक्कत नहीं थी | वे जब क्लब पहुंचे तो देखा कि दादा, तो क्लब में मौजूद हैं | पर यह नहीं बताया कि वे क्लब कैसे पहुंचे | ऐसा था दादा का नियमितता और अपनी एक्सरसाईजेस के प्रति जुनून |


दिनांक 4.9.21 का अपडेट

4 ½ वर्ष तक दादा मैं (आर एस वर्मा) और बड़जात्या साहब ठीक 4.00 बजे (रविवार सहित) रेसिडेंसी बिना किसी नागा, चाहे ठंड हो, बारिश हो या गर्मी बराबर रोजाना पहुँच जाते थे | दादा इसे नियमितता (Regularity) और अनुशासन (Discipline) के उदाहरण के तौर पर क्लब के मेम्बर्स को अक्सर बताया करते थे |

कई बार ऐसा भी होता था की दादा किसी क्लब मेम्बर को उसके भले के लिए सुबह जल्दी 4.00 से 5.00 बजे के बीच बुला लेते थे, परंतु दादा तो नियत समय पर क्लब में पहुँच जाते थे, पर वह मेम्बर ही देर से आता था | दादा हमेशा कहते थे कि यदि आप 100 कदम चलेंगे, तो वह 110 कदम चलने को तैयार हैं | दादा इसका कड़ाई से पालन भी करते थे |

यदि कोई अपनी व्यक्तिगत या विशेष समस्या के चलते क्लब जॉइन करता था, तो दादा ऐसे हरेक व्यक्ति की समस्या का गहराई से अध्ययन करते थे और फिर उसका एक विस्तृत एक्सरसईज़ और डाइट का चार्ट बनाते और फिर उस चार्ट का पूरी निष्ठा के साथ अनुसरण भी करवाते थे | ऐसा किसी अन्य क्लब या जिम में शायद ही देखने को मिले |

दादा को शरीर विज्ञान (Anatomy & Physiology) और डाइट का इतना गहन ज्ञान था कि कई बार चिकित्सक और डाईटीसियन भी आश्चर्य करते थे | किसी का भी चार्ट बनाते समय दादा अपने इस ज्ञान का सफलतापूर्वक उपयोग भी करते थे |

वास्तव में दादा क्लब के हर मेम्बर की समस्या को एक चैलेंज के रूप में लेते थे और उसे अपने साईंस के हिसाब से ठीक करने का निष्ठा के साथ प्रयास करते थे और कई बार यह सिद्ध भी हो जाता था कि चिकित्सा विज्ञान गलत है और उनका विज्ञान सही है | ऐसे कई उदाहरण देखने में भी आते थे |

एक बात का उल्लेख करना रह गया कि शुरू-शुरू में दादा अपने छवानी स्थित पैतृक घर के सामने स्थित विजय बहादुर गुरु व्यायाम शाला में कसरत करने जाया करते थे | वे कहते थे कि उन्होंने व्यायामशाला में स्थित अखाड़े को अन्य लोगों की तरह फावड़े से गोदा भी है | किसी अखाड़े को गोदना भी अपने आप में एक बड़ा कठिन और परिश्रम से भरा हुआ काम है, जिसमें पूरा शरीर पसीने में नहा जाता है | वे बताते थे कि उस्ताद विजय बहादुर एक अगरबत्ती जलवा देते थे और जब तक वह अगरबत्ती जलती रहती, उन्हें दंड लगाते रहना पड़ता था | बाद में हालांकि दादा ने अखाड़े और अखाड़े के व्यायाम को पूर्ण रूप से अलविदा कह दिया था |

विजय बहादुर व्यायाम शाला के सामने ही एक खेल का मैदान भी था | इस मैदान मोहल्ले और छावनी के बच्चे अक्सर फुटबाल खेलते थे | दादा ने भी इस मैदान पर बहुत फुटबाल खेला और बरसते हुए पानी में फुटबाल खेलने का तो आनंद ही कुछ और था |

क्लब में भी दादा ने फुटबाल और हॉकि खिलवाते थे और बारिश में तो अवश्य ही | वे कहते थे कि बरसते हुए पानी में हॉकि और फुटबाल खेलने से ग्राउंड बहुत बढ़िया हो जाता है |

4.आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश: इसी समय दादा का आध्यात्मिक क्षेत्र में भी प्रवेश हुआ | रामकृष्ण आश्रम, इंदौर जो आज किला मैदान रोड पर स्थित है, वह पहले रेडियो कॉलोनी में स्थित था |

एक दिन दादा रेसिडेंसी गार्डेन में कुछ खोए-खोए से और उदास बैठे हुए थे, उसी समय स्वामी सत्यस्वरूपानन्द जी महाराज, जिन्होंने इंदौर आश्रम की स्थापना 1957 में की थी, और जो माँ शारदा के direct disciple भी थे, उधर से

गुजरे | उन्होंने दादा के कंधे पर हाथ रखकर पूछा, “बेटा क्या बात है ? दादा ने उन्हें अपनी परिवारिक गाथा सुनाई |

स्वामीजी दादा को अपने साथ रेडियो कॉलोनी, इंदौर स्थित आश्रम में ले गए और उनसे बड़े प्यार से बात की तथा उन्हें वहाँ अपने सामने बैठाकर भोजन भी करवाया | उन्होने दादा से कहा। “बेटा यहाँ आते रहा करो |” धीरे-धीरे दादा स्वामीजी के निकट आते गए | इस तरह दादा को आध्यात्म से स्वामीजी ने जोड़ लिया | साथ ही वे दादा से आश्रम में शारीरिक श्रम और दंड बैठक आदि भी अपने सामने लगवाते थे |

स्वामी सत्यस्वरूपानन्द जी महाराज ने ही दादा को 100 पेज प्रतिदिन समझ कर पढ़ने की आदत डलवाई थी | दादा सबको बड़े गर्व से बताते थे कि उनकी आदत सौ पेज रोज पढ़ने की है | उनकी पढ़ी हुई किताबों में उनके द्वारा की गई अंडर लाईन और महत्व के क्रम के हिसाब से की गई स्टार मार्किंग **** भीदेखने लायक है | ऐसा लगता था कि किताब में प्रिंट की गई है | उनका पुस्तकों का रख रखाव भी काबिले तारीफ था | दादा अपनी पढ़ी हुई किताबों में से जब भी संदर्भ (reference) देते थे, तो पैराग्राफ नंबर और पेज नंबर से देते थे |

स्वामी सत्यस्वरूपानन्द जी महाराज ने दादा को रामकृष्ण मिशन, बेलुर मठ, कोलकाता के अध्यक्ष श्री वीरेश्वरानन्द जी महाराज से, जो माँ शारदा के direct disciple थे से आध्यात्मिक दीक्षा दिलवाई थी | उसके बाद तो दादा का कोलकता आना-जाना लगा रहता था |

5.दादा का बॉडी बिल्डिंग और आसनों से परिचय: दादा से बड़ी बहन डॉली और उनसे छोटी बहन मीरा दोनों की शादी कोलकाता के एक ही परिवार में हुई थी | बहन डॉली के पति श्री सुकुमार दास सेना में कर्नल थे और मीरा के पति श्री रवीद्र कुमार दास दोनों दादा से बहुत प्यार करते थे |

दादा के जीजा श्री सुकुमार दास दादा को बहुत प्यार करते थे | वे बड़े मज़ाकिया स्वभाव के भी थे | एक बार वे जब इंदौर में थे, तो दादा और श्री गर्ग साहब उन्हें लेकर सराफा चौपाटी गए | वहाँ नाश्ते के बाद गर्ग साहब ने पान वाले से कहा तीन पान अच्छे बनाओ और पान बहार भी डालना | सुकुमार दास जी ने जब ये सुना, तो वे बोले पान के बाहर नहीं सब पान के अंदर डालो पैसा जो पूरा ले रहे हो | उनकी इस बात पर दादा और गर्ग साहब बहुत हँसे और उन्हें समझाया कि पान बहार एक मसाला है और पान के अंदर ही डाला जाता है |

दिनांक 6.9.21 का अपडेट

कर्नल साहब (दादा के जीजाजी) ने आठ महीने के लिए दादा को कोलकाता बुलवा लिया और उनकी मुलाक़ात बॉडी बिल्डर और इंडिया से फ़र्स्ट मिस्टर यूनिवर्स श्री मंतोष रॉय से करवा दी |

श्री मंतोष रॉय का जन्म ढाका जिले के गाजरिया नामक गाँव में  21.10.1916  को  हुआ था | उन्हें भी अपने जन्म से ही गरीबी से लड़ाई लड़नी पड़ी थी | 12 साल की उम्र से ही उन्हें वेट लिफ्टिंग में आनंद आने लगा था | वह श्री विष्णु घोष, जो इंडिया के सबसे अच्छे योग शिक्षक थे (जिनसे दादा ने भी योग सीखा था) से ट्रेनिंग लेने का सपना देखते थे |

एक दिन श्री विष्णु घोष ने मंतोष रॉय को प्रैक्टिस करते हुए देख लिया, और खुश होकर उन्हें अपना विद्यार्थी बना लिया | मंतोष रॉय श्री विष्णु घोष को ईश्वर की तरह पूजते थे | श्री मंतोष रॉय लगातार 8 वर्ष तक आल इंडिया बॉडी बिल्डिंग चैंपियनशिप जीतते रहे | 1951 में वे इंग्लैंड मिस्टर यूनिवर्स प्रतियोगिता में भाग लेने गए और मिस्टर यूनिवर्स का खिताब ग्रुप III (Amateur Division Category) में जीत लिया | 2005 उनका हृदयघात से स्वर्गवास हुआ था |

श्री मंतोष रॉय से ही दादा को बॉडी बिल्डिंग का शौक लगा और उनके साथ एक्सरसाईजेस करने लगे | वे दादा को बॉडी बिल्डिंग के टिप्स भी सिखाते जाते थे | श्रीमंतोष राय इंदौर भी आए थे और अपने बेटे को कुछ समय के लिए दादा के पास ही एक्सरसाईज़ करने के लिए छोड़ दिया था | उनका बेटा उस दौरान दादा के साथ ही रहा |

उसी समय दादा की मुलाक़ात बॉडी बिल्डर श्री मनोहर आइच से भी हुई थी | वे भी दादा से सीनियर थे | श्री मनोहर आइच को पॉकेट हरक्युलस का खिताब भी मिला था |

उसी दौरान दादा श्री बिष्णु घोष से भी मिले, जिनसे दादा ने योग की बारीकियाँ सीखी | श्री विष्णु घोष ने ही दादा को एक चाइनिज मार्शल आर्ट्स ट्रेनर के पास मार्शल आर्ट्स सीखने के लिए भी भेजा था | श्री विष्णु घोष ने ट्रेनर को यह निर्देश विशेष रूप से दिया था कि वे दादा को मार्शल आर्ट्स इस तरह से सिखाएँ कि उनके सुंदर और सुगठित शरीर को कुछ भी नुकसान न पहुंचे | दादा जूडो-कराटे में ब्लेक बेल्ट भी थे |


श्री मंतोष राय, श्री मनोहर आइच, श्री विष्णु घोष से घनिष्ठ परिचय, उनसे सीखने की लालसा, बेलुर मठ (रामकृष्ण मिशन का हेड ऑफिस), इन तीन कारणों से दादा जब भी मौका मिलता कोलकाता चले जाते थे और कुछ दिन वहाँ रुकते थे | फिर दादा की बहनें तो वहाँ थी ही |

दादा सुबह-सुबह कोलकाता में मैदान (विक्टोरिया मेमोरियल) 3.00 से 4.00 बजे पहुँच जाते थे अपनी एक्सरसाईजेस आदि करते, गंगा नदी में मछली पकड़ते और वहीं पकाकर खा लेते थे | दादा अपनी कोलकाता विजिट का बहुत आनंद उठाते थे|

दादा कोलकाता का एक बहुत रोचक किस्सा सुनाते थे | कोलकाता में दादा के कर्नल साहब (जीजाजी) के एक बहुत प्रसिद्ध सर्जन दोस्त उनके घर आए | जीजाजी ने उनसे दादा का परिचय करवाया और साथ में तारीफ भी कर दी | सर्जन साहब अपनी कमर के दर्द से परेशान थे, उन्होंने दादा से कहा, “दिलीप कुछ कर सकते हो क्या ?”

दादा का उस समय तक का अनुभव आज के जैसा तो नहीं था, फिर भीहिचकिचाते हुए कहा दिया कोशिश    करूंगा | दादा ने उन्हें सीधा खड़ा करके घर के एक पिलर से बांधकर छोड़ दिया (समय याद नहीं कितनी देर बांध कर रखा, पर निश्चित रूप से काफी देर तक रखा था) | इसके बाद सर्जन साहब अपने घर चले गए | दादा को डर तो लग ही रहा था कि पता नहीं क्या रिएक्शन होगा |

दूसरे दिन सुबह-सुबह सर्जन साहब आ गए | दादा अंदर के कमरे थे, उन्हें पता लगा, तो वे डर के मारे छुप गए | कर्नल साहब ने दादा को आवाज लगाई, पर दादा बाहर ही नहीं आए | कर्नल साहब अंदर आ गए और दादा को बुलाया और कहा सर्जन साहब आए और तुम्हें बुला रहे हैं | बड़ा डरते-डरते दादा कर्नल साहब के साथ बाहर आए, तो देखा कि सर्जन साहब के हाथ में एक रसगुल्ले का कुल्हड़ था | सर्जन साहब ने दादा से कहा अरे दिलीप मेरा दर्द तो गायब हो गया, तुमने क्या जादु किया और दादा की ओर कुल्हड़ बढ़ा दिया | दादा ने राहत की सांस लेते हुए उनसे कुल्हड़ ले लिया |

6.मिस्टर एम पी:कोलकाता से वापस आने पर दादा ने अपने ही बंगाली क्लब के जिम में बॉडी बिल्डिंग प्रतियोगिताओं के लिए ज़ोर-शोर से तैयारी शुरू कर दी | दादा ने लोकल बॉडी बिल्डिंग की अनेक प्रतियोगीताओं में जीत हासिल की और आगे चलकर दादा मिस्टर एम. पी. बने |

इसके बाद दादा ने मिस्टर इंडिया प्रतियोगिता कि तैयारी शुरू कर दी। एक बार मिस्टर इंडिया प्रतियोगिता में कुछ अन्य प्रतियोगियों ने ईर्ष्यावश दादा के भोजन में कुछ मिला दिया, जिससे दादा के शरीर में लाल-लाल रेशेस हो गए थे | दादा प्रतियोगिता छोड़कर वापस इंदौर आ गए और यह निर्णय ले लिया कि वे फिर कभी मिस्टर इंडिया प्रतियोगिता या अन्य किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लेंगे |

दादा ने मार्शल आर्ट्स की भी ट्रेनिंग कोलकाता में ली थी और वे जूडो-कराटे में ब्लेक बेल्ट थे | दादा टेबल टेनिस, फुटबाल, हॉकि आदि भी बहुत अच्छा खेलतेथे | ऐसा लगता था जैसे वे हर खेल में एक्सपर्ट थे |

दादा बॉक्सिंग में भी एक्सपर्ट थे | दादा जब होल्कर कॉलेज में पढ़ते थे, तो वहाँ एक अच्छा हट्टा-कट्ठा अफ्रीकन बॉक्सर भी पढ़ता था | वह दादा से अधिक स्ट्रॉंग भी था | एक बार उसने दादा को चैलेंज कर दिया और दोस्तों के उकसाने पर दादा भी उसके साथ बॉक्सिंग के लिए तैयार हो गए | बॉक्सिंग करते समय दादा से एक पंच उसके मुंह पर लग गया | दादा का पंच बहुत स्ट्रॉंग था, अफ्रीकन अपना सर पकड़कर बैठ गया | दादा ने अपने मन में सोचा कि आज तो ये अफ्रीकन मुझे छोड़ेगा नहीं, इसलिए दादा एरीना में से कूदकर बाहर आ गए और अपनी साइकल उठाई और बड़ी तेजी से वहाँ से निकल लिए |

उनको क्या नहीं आता था ? डाइट के वे एक्सपेर्ट थे | एक डाईटीशियन का ज्ञान भी उनके सामने फीका था | Anatomy और physiology में दादा का ज्ञान किसी डॉक्टर से कम नहीं था |

7.दादा की शिक्षा: दादा की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा छावनी स्थित घर के सामने वाले सरकारी स्कूल में ही हुई थी | दादा की हायर सेकंडरी स्कूल की शिक्षा इंदौर के प्रसिद्ध तिलोकचंद जैन स्कूल में हुई थी | वहाँ रहते हुए दादा ने जैन धार्मिक ग्रन्थों का भी गहन अध्ययन किया और स्कूल द्वारा प्रायोजित कई धार्मिक प्रतियोगिताओं में इनाम भी जीते थे |

दादा ने होल्कर साईन्स कॉलेज से बी एस सी किया था | वहाँ उन्हें 12 खेलों, जैसे फुटटबाल, हॉकी, बैडमिंटन, बॉक्सिंग, टेबल टेनिस, क्रिकेट, मार्शल आर्ट्स आदि में महारत (Excellence) के लिए 12 Honour Caps और एक ब्लेज़र भी मिला था|



7.नौकरी: दादा ने कुछ समय तक PFIZER कंपनी में Medical Representative का काम किया | कंपनी ने उनका ट्रान्सफर मुंबई कर दिया कुछ दिन दादा वहाँ रहे भी |

दादा की इन्स्टृमेंटल एक्सरसाईजेस में दक्षता देखकर, तलवलकर जिम के मालिक ने उन्हे अपने जिम में आमंत्रित किया | उस समय शायद उनकी मुंबई में एक ही ब्रांच थी | दादा ने कुछ दिन उनके यहाँ जिम के स्टूडेंट्स की कोचिंग भी की | परंतु पारिवारिक परिस्थितियों और जिम्मेदारियों के कारण दादा ने मुंबई में न रहने का निश्चय किया और नौकरी छोड़कर वापस इंदौर आ गए |


मुंबई से वापस आने पर दादा ने कुछ समय तक नूतन हायर सेकंडरी स्कूल, चिमनबाग, इंदौर में टीचर की नौकरी भी की | उस समय स्कूल में बाणगंगा के नामी पहलवान लोग भी पढ़ते थे | वे दादा का सुंदर और गठीला शरीर देखकर उनसे बहुत प्रभावित रहते थे और थोड़ा सा भयभीत भी रहते थे |

दादा को कुछ आर्थिक मदद मिल इस उद्धेश्य से कर्नल सी के नायडू, भारतीय क्रिकेट टीम के पहले कप्तान, डॉ एस के मुखर्जी आदि ने स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के उस समय के जनरल मैनेजर से दादा को स्पोर्टसमेन कोटे में क्लर्क के रूप में रखने का निवेदन और अपनी अनुशंसा की, जो स्वीकार हो गई | दादा की स्टेट बैंक ऑफ इंदौर, सोनकच्छ शाखा से नौकरी शुरू हुई | दादा ने कुछ समय बाद उनका बैंक की देवास शाखा में स्थानांतरण हो    गया | इंदौर स्थानन्तरण होने के बाद दादा जीवन पर्यंत स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के प्रधान कार्यालय, इंदौर और कई स्थानीय शाखाओं में कार्यरत रहे | 1996 में बैंक से सेवा निवृत हुए |

उस समय बैंक का प्रधान कार्यालय गीता भवन चौराहे पर, जहां आज NEXA का शो-रूम है, वहाँ हुआ करता था | सेंट्रल झोन की क्रिकेट टीम में उस समय अधिकांश खिलाड़ी स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के ही हुआ करते थे (जगदाले, गुलरेजली, नरेंद्र मेनन, मंजूर हसन, विनोद नारंग आदि), ये सब और दादा एक ही डिपार्टमेंट में काम करते थे, और थे भी एक नंबर के ठिलवे | एक बार ये सब गीता भवन चौराहे पर एक चाय-नाश्ते के ठेले पर खड़े हुए थे | गर्मी का मौसम था, लस्सी में बर्फ डलवाना था, परंतु बर्फ तोड़ने का कोंचा ठेलेवाले को मिल नहीं रहा था | उधर से दादा साइकल पर जा रहे थे, उन लोगों ने दादा को रोका और चैलेंज कर दिया की दादा आज तो आप ये बर्फ की सिल्ली अपने हाथ से तोड़ कर दिखाओ, तो जाने | दादा ने भी आव-देखा-न-ताव और कुछ ऐसे एंगल से अपनी मुट्ठी से सिल्ली पर प्रहार किया की वह टुकड़े-टुकड़े हो गई |

एक बार बैंक ने दादा को क्रिकेट टीम का कोच नियुक्त कर दिया | सब खिलाड़ी खुश कि दादा तो अपने ही हैं, मजे करेंगे | पर हुआ इसका उल्टा ही | दादा उनके साथ कोचिंग के दौरान बहुत सख्ती से पेश आते थे और उनसे जमकर वर्क आउट करवाते थे | दादा वर्क आउट के समय सब दोस्ती भूल जाते थे |

दादा बैंक में अपने Colleagues के साथ काम करते हुए कभी भी अपनी विद्वत्ता प्रदर्शित नहीं करते थे और वे सबके साथ ऐसे घुल-मिल जाते जैसे वे भी उनके जैसे ही हैं | दादा की इंग्लिश बहुत अच्छी थी, अतः जब भी संयोगितागंज, इंदौर शाखा में कोई फ़ोरेनर अपना ट्रेवलर चेक का भुगतान लेने शाखा में आता था तो उसे दादा के पास भेज दिया जाता था, ताकि दादा उसकी बात समझ कर उसका काम सरलता से करवा सकें |

8.संघर्ष: दादा का संघर्ष के साथ तो चौली-दामन का साथ था | दादा अपने परिवार के प्रति इतने समर्पित थे कि छोटे भाई-बहन को मक्खन आदि मिल सके इसके लिए घंटो मथुरवाले (छावनी चौराहा) के यहाँ मिल्क सेपेरेटर मशीन भी चला दिया करते थे और बदले में मक्खन ले आते थे |

बैंक के अलावा अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए दादा बच्चों को घर जाकर इंग्लिश की ट्यूशन भी पढ़ाया करते थे | वह क्लब के अलावा ग्रुप में भी लोगों को एक्सरसाईज़ करवाते थे | जिस भी साधन से दादा अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते थे, वह उन्होंने किया |

अपनी पूरी जिंदगी में दादा ने कभी किसी के आगे पैसों के लिए या किसी भी तरह की मदद के लिए हाथ नहीं फैलाया | अपने जीवन में खूब मेहनत की और परिवार को कभी भी पैसे की कमी महसूस नहीं होने दी |

अपनी माँ का दादा बहुत ज्यादा सम्मान करते थे | मां का कहना कभी नहीं टालते थे | वे कहते थे वर्मा जी यदि मेरा वश चले, तो मैं माँ के लिए अपनी चमड़ी से जूते या चप्पल तक बनवा दूँ |

दादा की कड़ी मेहनत हर समय की उनकी विभिन्न कार्यों में व्यस्तता देखकर माँ कई बार परेशान हो जाती थी | दादा कभी भी रात में जब नींद खुल जाती थी तो नहाकर मेडिटेशन में बैठ जाते थे या अपनी स्टडि करने लगते  थे | बिस्तर में गहरी नींद आ रही हो, तो ही रहते थे | अन्यथा उठकर अपने आपको व्यस्त कर लेते थे | यह सब देखकर मां परेशान हो जाती थी और कहती थी कि तू कब आराम करता है, कब उठकर नहाने लगता है, मेरे तो कुछ भी समझ नहीं आता है | उनकी मां वे बाहर न जा सके इसके लिए कई बार घर के दरवाजे पर ताला लगवा कर चाबी अपने पास रख लेती थीं | फिर दादा मां को बड़े प्यार से पटाते, उनकी मालिश करते, फिर वह समझ जाती थी कि दादा ये सब किसलिए कर रहे हैं और धीरे से उनसे बाहर जाने की इजाजत यह कहते हुए ले लेते थे कि मां मैं जल्दी ही लौट आऊँगा |

9.लड़कियों और महिलाओं में काली का रूप देखना: दादा प्रत्येक बच्ची, लड़की और महिला में माँ काली का रूप देखते थे | वे उन्हें कभी भी छूते तक नहीं थे और उन्हें भी अपने पैर नहीं छूने देते थे | वे उनसे कहते थे कि आप सब मां हो और पूजनीय हो |

पहले क्लब के जिम में दादा सिर्फ पुरुषों को ही प्रवेश देते थे | कई वर्षों के बाद ही उन्होंने लड़कियों और महिलाओं को प्रवेश देना शुरू किया | इसका मुख्य कारण दादा बताते थे कि उनके कुछ दोस्तों ने उनसे अपनी बहन या पत्नी के स्वास्थ्य के बारे में सलाह लेना शुरू किया |

तब दादा के मन में यह खयाल आया कि क्यों न लड़कों और पुरुषों के साथ-साथ लड़कियों और महिलाओं को भी जिम में प्रवेश दिया जाए | और लड़कियों और महिलाओं को भी प्रवेश देना का निर्णय ले लिया | इसके बाद ही जिम में सभी लड़कों और पुरुषों के लिए ट्रैक सूट पहनना अनिवार्य कर दिया |

दादा लड़कियों और महिलाओं की क्लब में सुरक्षा को लेकर बहुत सचेत रहते थे | इसी कारण वे लड़कों को जांच-परखकर ही प्रवेश देते थे |

दिनांक 8.9.21 का अपडेट 
कई बार यदि उन्हें लड़कियों और महिलाओं को क्लब में सुबह 4.30 या 5.00 बजे जल्दी बुलाना होता था, तो पहले मुझसे (आर एस वर्मा) या किसी और विश्वसनीय से पूछते थे कि कल से क्या आप सुबह 4.30 या 5.00 बजे क्लब आ सकते हो, और हाँ कहने के बाद ही वे उन लोगों को जल्दी आने के लिए कहते थे |

दादा बच्चों से इतनी जल्दी घुल-मिल जाते थे और उनका विश्वास जीत लेते थे कि बच्चे एक बार अपने माँ-बाप की बात नहीं मानते, पर दादा के सामने भीगी बिल्ली के समान बन जाते थे और उनकी हर बात मान लेते थे | इस पर कई बार पैरेंट्स को भी आश्चर्य होता था और वे कहते थे कि दादा ये हमारी बात तो मानते ही नहीं है, पर आपकी हर बात झट से मान जाते है |

दादा यदि किसी को अपने हाथों तेल लगाकर मालिश कर रहे होते थे, तो छोटे बच्चे भी आ जाते और कहते कि दादा मुझे भी पैरों मे दर्द हो रहा है, मुझे भी तेल लगाकर मालिश कर दो | दादा उन्हें बड़े प्यार से टेबल पर बैठा लेते या अपनी गोद में बैठा लेते और तेल लगाकर उनकी भी मालिश कर देते थे | जबकि बड़ों को दादा से मालिश करने के लिए कहने में बड़ा संकोच होता था | कुछ छोटे बच्चे तो दादा के अलावा क्लब किसी और से बात ही नहीं करते थे |

मुफ़्फ़दल (फरीदा का बेटा) को यदि स्कूल में कुछ चोट भी लग जाती और टीचर उसे ड्रेससिंग करवाने का बोलती थीं, तो यह कहते हुए मना कर देता था कि रहने दीजिए मैडम दादा लगा देंगे | वह अपनी मम्मी से भी ड्रेससिंग नहीं करवाता और शाम को या सुबह दादा को ही अपनी चोट बताता और ड्रेससिंग भी उन्हीं से करवाता था | मुफ़्फ़दल स्वयं का नाम बताता था – मुफ़्फ्दल दास रंगवाला और दादा का नाम बताता था दिलीप दास रंगवाला | इसी से हम अंदाज लगा सकते हैं कि दादा बच्चों से बच्चे दादा से कितना प्यार करते थे और उन्हें इस पर बड़ा गर्व होता था |

8.बंगाली क्लब का नाम: बंगाली क्लब का इंदौर शहर में बड़ा नाम हो गया था | क्लब में पंडित रविशंकर, राहुल द्रविड़ और तत्कालीन वेस्ट इंडीज के कप्तान सर गैरी सोबर्स भी आ चुके है |

सर गैरी सोबर्स ने तो दादा को प्रस्ताव भी दिया था कि दिलीप तुम हमारे साथ वेस्ट इंडीज चलो और हमारे साथ रहकर टीम को शारीरिक प्रशिक्षण देना | दादा ने बड़ी विनम्रतापूर्वक मना कर दिया |

एक बार दादा पंडित रविशंकर जी के सितार-वादन कार्यक्रम में रवीद्र नाट्य गृह, (इंदौर) गए | देर रात तक कार्यक्रम चला और अंत में केवल गिने-चुने श्रोता ही बचे, उनमें दादा भी शामिल थे | दादा आगे की पंक्ति में बैठे हुए थे | दादा बड़े ध्यान और बड़ी लगन से उनका सितार-वादन सुन रहे थे | दादा का सुंदर और सुगठित शरीर देखकर रविशंकर जी बड़े प्रभावित हुए | कार्यक्रम की समाप्ति पर दादा को अपने पास बुलाया और पूछा कि तुम क्या करते हो और तुमने अपना शरीर इतना सुंदर और सुगठित कैसे बनाया है | दादा ने बंगाली क्लब और अपनी दैनिक दिनचर्या के बारे में विस्तार से उन्हें बताया |

तब रविशंकर जी ने कहा कि दिलीप मुझे कार्यक्रमों में लगातार बैठे रहना पड़ता है, तुम मुझे कुछ ऐसे आसन सिखा दो जिससे मुझे देर तक बैठे रहने में आसानी हो या कम से कम तकलीफ हो | दादा ने सहर्ष और तुरंत हाँ कर दी पर बड़ी विनम्रता के साथ मज़ाक भरे लहजे मे यह भी बोल दिया, “आपको भी मुझे सितार बजाना सिखाना होगा |” अगले दिन रविशंकर जी बंगाली क्लब में आये और दादा से आसान सीखे | रविशंकर जी ने दादा को सितार-वादन के कुछ टिप्स भी दी |

दादा की एक खास विशेषता या आदत थी कि वे पब्लिसिटी से हमेशा दूर रहते थे | उन्होंने न कभी प्रेस को कोई साक्षात्कार दिया और न कभी कोई सामाजिक सम्मान स्वीकार किया |

स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के मैनिजिंग डाइरेक्टर ने बैंक के प्रधान कार्यालय में कर्मचारियों के लिए एक जिम बनवाया और दादा से उसका उदघाटन करने के लिए कहा, तो दादा ने विनम्रतापूर्वक मना करते हुए कहा कि सर किसी ओर से करवा लीजिए, मैं नहीं कर सकूँगा |

10.दादा और क्लब के स्टुडेंट्स का विकास: दादा के पास जो भी कोई आता था, बच्चा या बड़ा, वो दादा का हो जाता था | दादा कहते थे कि मुझे तुम्हारी Body, Mind & Soul तीनों चाहिए | जो भी उन्हें ये तीनों सौंप देता था, उसका तो समझ लो उद्धार निश्चित था |

दादा अपने प्रत्येक स्टुडेंट की अलग-अलग आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक्सरसाईज़ का रूटीन तय करते थे | वे स्वयं घंटों-घंटों बैठकर, स्टुडेंट के शरीर की कमियों, उसकी आर्थिक और पारिवारिक स्थिति को ध्यान में रखकर गहन स्टडी और सोच-विचार करके एक्सरसाईज़ और डाइट का चार्ट बनाते थे | उनकी स्टुडेंट से भी यह अपेक्षा रहती थी कि वह पूरी लगन से उनके दिए हुए चार्ट का अनुसरण करे | वे न केवल शारीरिक विकास बल्कि स्टूडेंट्स के सम्पूर्ण विकास (overall development) पर ध्यान देते थे |

He very often used to say that he is concerned not only with the physical development of students but he is more concerned with their life.

His insistence was that the physical, moral, intellectual and spiritual practices should go hand in hand.

He also used to say that my students have to excel not only in exercises but also in their school or college studies. His many of the students were brilliant and he always used to mention them to others with a pride.

दिनांक 9.9.21 का अपडेट

कई बार बैंक में साथी दादा को ‘भोंट’ या ‘दादा आपकी अक्ल तो घुटने में है, कह देते थे |’ पर दादा इसका बुरा न मानते हुए उनके जैसे ही बन जाते और हंस देते थे | वैसे दादा कभी भी अपने आपको पहलवान कहलाना पसंद नहीं करते थे |

1976 में उनका एक स्टुडेन्ट Ophthalmology में MBBS कर रहा था | चूंकि भविष्य में वह आई सर्जन बनने वाला था, अतः उसको दादा ऐसी एक्सरसाईजेस देते थे जिससे कि उसकी उँगलियाँ कड़क न हो और नरम (soft) रहें, ताकि वह आसानी से आँखों की सर्जरी सहजता से कर सके |

13.शिक्षा और “प्रांजल (दि. दास) ग्रुप”: दादा अक्सर यह कहते थे की जो शिक्षा हमारे बच्चों को स्कूल या कॉलेज में दी जा रही है वह केवल “रोटी कमाने वाली शिक्षा” (Bread Winning Education) है, इससे बच्चे  बड़े होकर  पैसा तो खूब कमा सकते हैं, परंतु एक अच्छा जीवन नहीं जी सकते हैं |

दादा के अनुसार शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों को:-

ज्ञान प्राप्ति के अलावा, बच्चों के व्यक्तिव का विकास कर सके,

उन्हें साहसी और दृढ़ निश्चयी बनाए ताकि वे जीवन में कठिनाईयों का सामान आसानी से कर सकें | उन्हें सफलता और असफलता, दुख और सुख में समान रख सकें |

खेल-कूद और व्यायाम के द्वारा उनके शरीर को मजबूत और स्वस्थ रख सके, क्योंकि स्वस्थ मन एक स्वस्थ शरीर में रहता है |

चरित्रवान बनाए | उनके व्यक्तित्व को ऐसा बनाए कि यदि उन्हें लाखों की भीड़ में भी खड़ा कर दें, तो वे अलग ही दिखें | बच्चों से वे कहते की हमें भीड़ का हिस्सा कभी भी नहीं बनना चाहिए, हमारा व्यवहार अन्य लोगों से या लीक से हटकर होना चाहिए |

उन्हें बुद्धिमान (intelligent) के साथ-साथ विवेकशील (wise) भी बनाए | दादा कहते थे, “All wise people are intelligent but all intelligent people are not wise.”

जो उनके मन को एकाग्र रखना सिखाए, ताकि वे अपना हर काम सर्वश्रेष्ठ तरीके (excellent manner) से कर सकें |

बच्चों को अहंकार से दूर रहना सिखाए और उन्हें विनम्र बनाए | उन्हें आत्मविश्वासी बनाए |
जो मन को शांत रखते हुए उनको तनावों  से दूर रखे |

जो उनको निर्भय रहना सिखाए |

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए अक्सर वे मुझसे कहते थे वर्माजी बच्चों को पढ़ने के लिए ऐसी पठन सामग्री दो जो उन्हें यह बताए कि अच्छा जीवन कैसे जिया जाए और अपने व्यक्तित्व का सही विकास कैसे किया जाए |

2011 क्लब में एक ‘Young Buds Club’ शुरू किया गया | 2012 में इसका नाम बदलकर ‘रियल एजुकेशन क्लब’ रखा गया | कुछ कारणों से यह एक्टिविटी 2013 और 2014 में स्थगित रही |

2015 में दादा की सलाह पर इसका नाम बदलकर “प्रांजल ग्रुप” रखा गया | ‘प्रांजल’ का अर्थ है  - बिलकुल सरल और सटीक (very simple and exact) और तब से इस ग्रुप का सफर अभी भी जारी है |

यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि ग्रुप की पोस्ट्स कॉपी/पेस्ट न होकर आध्यात्मिक साहित्य और पत्रिकाओं से पढ़कर तैयार की जाती हैं |

इस ग्रुप में शुरू में बच्चों को ही सदस्य बनाया गया | फिर उनके पैरेंट्स को भी शामिल किया गया और फिर क्लब के अलावा बाहर वालों को भी सदस्य बनाया जाने लगा |

आज “प्रांजल (दि. दास) ग्रुप” के Whatsapp पर 123 सदस्य हैं | प्रांजल ग्रुप की पोस्ट्स Facebook पर भी Radheshyam Verma के अकाउंट में रोज पोस्ट की जाती हैं |

दादा ने प्रांजल ग्रुप की पोस्ट्स पर चर्चा के लिए सप्ताह मे एक दिन क्लास भी शुरू कारवाई थी | जिसे Covid-19 की समस्या के चलते स्थगित करना पड़ा | वे कहते थे कि इन सब प्रायसों से यदि एक भी स्टुडेन्ट का जीवन सुधर जाता है, तो भी हमारे लिए यह एक बड़ी उपलब्धि होगी |

अब इस ग्रुप का नाम बदलकर “प्रांजल (दि. दास) ग्रुप” रख दिया है | अभी तक वर्ष 2011 में (69), 2012 में (28), 2015 में    (35), 2017 में (24), 2018 (116), 2019 में (226), 2020 में (208) और 2021 में दिनांक 9.9.21 तक (146) = कुल 853 लेख (articles) विभिन्न विषयों पर पोस्ट किए जा चुके हैं |

14.विविध प्रसंग: एक बार का किस्सा यूं है कि दादा की छोटी बहन कि कोलकाता में शादी थी | शादी कर्नल साहब के घर से ही हो रही थी | चाँवल, शक्कर, गेंहू आदि के बोरे, घी के कनस्तर और कुछ अन्य सामान ऊपर की मंज़िल पर पहुंचाना था | दादा ने अपनी लुंगि अच्छी तरह से कसकर बांध ली, कंधे पर एक देशी गमछा (towel) डाल लिया और बोरे अपने पीठ पर लाद कर बड़ी आसानी से चढ़ा रहे थे | शादी में बहुत से ऐसे मेहमान भी आए हुए थे, जो दादा से परिचित नहीं थे | उन मेहमानों से किसी एक ने कर्नल साहब से पूछ लिया, “कर्नल साहब ये हम्माल कहाँ से मिल गया, बड़ा मजबूत है, कितनी सरलता से बोरे उठाकर ले जा रहा है | कर्नल साहब बड़े ज़ोर से हंस पड़े और बोले, “अरे भाई, ये कोई हम्माल नहीं, मेरा साला और दुल्हन का बड़ा भाई है |”





(दादा का बिदाई वाला पैराग्राफ कुछ समय बाद पोस्ट किया जाएगा)







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संस्मरण क्र.35/आर एस वर्मा/(1)- Part (I) , (II) Part (III) & Part (IV)

October 19, 2021
संस्मरण क्र.35/आर एस वर्मा/(1)- (Part-I)

1. दादा से मुलाक़ात: दादा से मेरी मुलाक़ात जुलाई, 1973 कब और कैसे हुई, यह बताने के पहले मैं संक्षिप्त में ये बताना चाहूँगा कि वे मेरी कौन सी परिस्थितियाँ थी, जिनके कारण मेरी मुलाक़ात दादा se हुई थी | मेरी तब शादी हो चुकी थी और दो बच्चे भी थे | स्टेट बैंक ऑफ इंदौर में नौकरी लग चुकी थी | दादा भी इसी बैंक में कार्यरत थे |

मुझमें आत्मविश्वास की बड़ी कमी थी, बहुत जल्दी जीवन की समस्याओं से घबरा जाता था | कुछ समझ ही नहीं आता था कि क्या करूँ | मैं स्वभाव से सीधा था और साथ ही थोड़ा डरपोक किस्म का भी | मुझे हमेशा ऐसा लगता था की दुनिया के लोग मेरे ही पीछे पड़े हुए हैं और मेरा उपयोग करना चाहते हैं | मेरा दूसरों मे ट्रस्ट लेवल भी कम था | कई बार जीवन लीला समाप्त कर लेने का विचार भी मन में आ जाता था |

मैं इधर-उधर बहुत भटका कि कोई बता दे कि जीवन को वास्तव में कैसे जिया जाए | धार्मिक प्रवचनों में भी जाता कि कहीं कोई उपयोगी सूत्र हाथ लग जाए | इंदौर नगर निगम मुख्यलाय के पास एक चर्च था, मैं वहाँ भी गया | मैं एक बार व्हाइट चर्च (शिवाजी वाटिका के पास) में वहाँ के फादर से भी मिला, पर कुछ हासिल नहीं हुआ | कुछ दिन ओंकारेश्वर भी घूमकर/रहकर आया कि कहीं कोई जीवन जीने का सही रास्ता बताने वाला मिल जाए | मैं और मेरी पत्नी उस समय के शहर के प्रसिद्ध मनोविज्ञान के डॉक्टर घोड़पकर से भी मिले, कि वह मेरी समस्या का कोई हल बता सके, पर वहाँ भी कुछ दवाओं के अलावा कुछ न मिला |

इसी समय मेरी मुलाक़ात जुलाई 1973 में श्री आर एस विजयवर्गीय (वल्लभ) से बैंक के ट्रेनिंग सेंटर में हुई, जहां मेरा बड़नगर से ट्रान्सफर हुआ था | वे वहाँ ट्रेनिंग पर आए हुए थे | उसी दौरान हम दोनों का बैंक की सी. ए. आई. आई. बी. (पार्ट-I) की परीक्षा का रिज़ल्ट आया और हम दोनों परीक्षा में पास हो गए थे | मैं परदेशीपुरा में रहता था और वे पास ही नंदानगर में | हमारी दोस्ती हुई और हम दोनों ने अगली परीक्षा (Part-II) की तैयारी साथ मिलकर करने का निश्चय किया | धीरे-धीरे दोस्ती घनिष्ठता में बदल गई | हम दोनों आपस में अपनी व्यक्तिगत समस्याओं पर भी अक्सर चर्चा करते रहते थे | वह मुझे बहुत समझाते भी थे | मैं उन्हें अपने से ज्यादा परिपक्व, दुनियादारी में व्यवहारिक और समझदार भी मानता था | मेरी परेशानियों को देखकर श्री विजयवर्गीय ने मेरी मुलाक़ात दिलीप दादा से जुलाई,1973 में करवाई |

2. दादा ने मुझे कैसे उबारा: दादा ने मुझसे एकसरसाईज़ के बारे में कोई भी बात नहीं की | बस इतना कहा कि मुझसे मिलते रहा करो | दादा यह अच्छी तरह से समझ गए थे कि मुझमें आत्मविश्वास और साहस की बहुत कमी है, पर मुझसे इस बारे में उन्होंने मुझसे कहा कुछ भी नहीं |

दादा मुझे रविवार या शनिवार को रेसिडेंसी बुलवाते और रेसिडेंसी की मुख्य बिल्डिंग के सामने बने गार्डेन की सीढ़ियों पर बैठकर घंटों मुझसे बात करते थे और अपने स्वयं के जीवन के बारे में भी मुझे बताते जाते | कभी दादा अपने साथ डेली कॉलेज तक वाकिंग पर साथ ले जाते और मेरे साथ बातें भी करते जाते | ये सिलसिला दिसंबर, 1975 तक चलता रहा |”

(i) मेरी संक्षिप्त कहानी: सबसे पहले दादा ने मुझसे मेरे और परिवार के बारे पूरी जानकारी ली, जो मैं संक्षिप्त में आपको भी केवल इसलिए बताना चाहूँगा कि आप यह अंदाज लगा सके कि दादा किन विकट परिस्थितियों में से मुझे खींचकर बाहर लाये | यह शायद और किसी के बस का था भी नहीं |

“मेरे परिवार या कुल में कोई भी पढ़ा-लिखा न था, कुछ को केवल अक्षर ज्ञान जरूर था | परदेशीपुरा (मिल एरिया), इंदौर, जहां मेरा जन्म हुआ था, में हमारी टेलरिंग की दुकान थी | दादी बड़े उग्र स्वभाव की थीं, पिताजी तो उनसे बहुत डरते थे और अक्सर दादी से विवाद होने पर महीनों-महीनो तक घर छोड़ कर चले जाते थे | इसीलिए मैं मानता था कि घर में मर्द के नाम पर केवल एक दादी ही थी | घर में आपस में झगड़े और एक दूसरे की मार-पिटाई करना आम बात थी | इसी कारण मुझे शादी करने में भी डर लगता था |

मेरी माँ और एक छोटी बहन मानसिक रूप से मंद बुद्धि (mentally retarded) थे | मेरी दादी बड़ी परिश्रमी थीं और उन्होंने ही हम भाई-बहनों पाला-पोषा और पूरे परिवार की देखभाल भी की |

दादी ने स्वदेशी मिल के गेट के पास एक गुमटी में चाय-नाश्ते की केंटीन भी लगाई | मैं और दादी उस गुमटी में ही रहते और केंटीन भी चलाते | हुकमचंद मिल में एक ठेकेदार के यहाँ स्कूल/कॉलेज के बाद काम भी करता था | शाम के समय इन्कम-टैक्स प्रेक्टिश्नर आई. पी. सचदेवा & कंपनी में पार्ट टाइम टाइपिस्ट की नौकरी भी की |


दादी के मन में शुरू से ही मुझे पढ़ाने की भी बहुत तमन्ना थी | मिडिल स्कूल तक की पढ़ाई मिल एरिया के सरकारी स्कूलों में हुई | इसके बाद नूतन हायर सेकंडरी स्कूल, चिमनबाग, इंदौर में कॉमर्स में प्रवेश लिया | दादा ने भी इस स्कूल में कुछ वर्षों तक एक शिक्षक के रूप में काम किया है | परंतु कुछ समय बाद दादी ने मना कर दिया की अब आगे नहीं पढ़ा सकती | हालांकि उस समय फीस बहुत नॉमीनल ही लगती थी, शायद 2 या 5 रुपये महिना | मैंने स्कूल जाना बंद कर दिया |

अपडेट दिनांक 20.10.21 (Part-II)
जब मेरे स्टेनो-ग्राफी विषय के टीचर स्व. आर. एस. निकम साहब को स्कूल न आने का कारण पता लगा, तो उन्होने मुझे मेरे एक मित्र के माध्यम से बुलवाया औरे मेरी फ्री-शिप करवा दी | स्कूल जाना वापिस चालू हुआ | | निकम सर मुझे अपने बेटे जैसा ही मानते थे और उन्होंने मेरे साथ बहुत मेहनत की और मुझसे भी कारवाई | उसी का परिणाम था कि हायर सेकंडरी की परीक्षा में कॉमर्स ग्रुप में मुझे पूरे मध्य प्रदेश में सर्वाधिक नंबर (Highest Marks) प्राप्त हुए और सिल्वर मेडल भी मिला |

शादी 1968 में बिना एक दूसरे को देखे ही कर दी गई, जब मैं बी.कॉम 2nd ईयर में पढ़ता था | स्टेट बैंक ऑफ इंदौर, बड़नगर शाखा में 27.12.1969 को क्लर्क के रूप में नौकरी लगी | बी कॉम फ़ाइनल भी मैंने बैंक में लगने के बाद ही किया | 1970 मे मेरी सबसे बड़ी बेटी अनिता का जन्म हुआ, 1973 में पुत्र मनीष का और 1977 में सबसे छोटी बेटी भावना का जन्म हुआ था | परिवार में हमारे अलावा दादा-दादी, पिताजी-माताजी, 1 भाई और 2 बहने थी (कुल बारह सदस्य थे |)”

ii) दादा का सानिध्य:जुलाई,1973 से दिसंबर 1975 तक मुझे दादा का सानिध्य मिलता रहा | दादा ने मन-ही-मन मुझे विकट परिस्थितियों से उबारने का निशचय कर लिया था | दादा ने एक तरह से मुझे अपना छोटा भाई ही मान लिया था | इस दौरान दादा ने एक्सरसाईज़ करने या क्लब जॉइन करने के लिए नहीं कहा, क्योंकि उनकी प्राथमिकता उस समय कुछ और थी |

दादा मुझे स्वामी विवेकानंद के बारे में बताते, रामकृष्ण मिशन की छोटी-छोटी पुस्तकें पढ़ने को देते | पर फिर भी उनका ज्यादा से ज्याद फोकस मुझसे चर्चा करने पर ही रहता था |

उस समय दादा किसी के घर, शादी-विवाह या अन्य किसी भी तरह के कार्यक्रमों में नहीं जाते थे | कुछ खाना-पीना तो दूर, किसी के यहाँ पानी भी नहीं पीते थे | परंतु एक दिन वे बिना कुछ बताए एक दिन स्वयं, मेरे घर आ गए, शायद मेरी स्थिति का जायजा लेने के लिए | करीब आधा घंटा रुके और परिवार में सबसे मिले |

मेरे बेटे मनीष का जन्म 6, जून,1973 में हुआ था और शायद जुलाई के अंत हमने एक कार्यक्रम रखा था | मैंने दादा को बड़ा सकुचाते हुए कहा कि दादा आप भी आयें | उस दिन बारिश भी बहुत हुई थी, पर दादा उस दिन घर आए और भोजन भी किया |

मुझे अब अपने मन में यह पक्का विश्वास हो गया था कि अब दादा ही मेरा उद्धार कर सकते हैं | धीरे-धीरे मेरा आत्म-विश्वास और साहस लौटने लगा | सी. ए. आई. आई. बी. परीक्षाएँ पास कर लेने से मुझे 1975 में प्रमोशन का अवसर मिलने वाला था | मैं ऑफिसर बनने का साहस नहीं जुटा पा रहा था | दादा ने मुझे प्रेरित किया कि मैं ऑफिसर अवश्य बनूँ | दादा यह जानते थे कि मेरे परिवार और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मेरी आय का बढ़ना बहुत जरूरी था | दादा की प्रेरणा और उत्साहवर्धन से और उनके आशीर्वाद से मेरा दिसंबर 1975 में प्रमोशन हो गया | दादा बड़े खुश हुए |

3.एक्सर साईज़ से मेरा जुड़ना: 1975 में मेरा ऑफिसर के रूप में प्रमोशन हुआ और 1976 में देवास ट्रान्सफर हो गया | मैं अपना परिवार और छोटे भाई को लेकर देवास चला गया, शेष परिवार इंदौर ही रहा | इसी बीच पिताजी को लंग कैंसर हुआ और उन्हें एम. वाय. एच. हॉस्पिटल में भर्ती किया गया | मैं दिन में बैंक में कार्य करता, शाम को इंदौर आता और रात को हॉस्पिटल में सोता और सुबह फिर देवास के लिए ट्रेन से रवाना हो जाता | दो जगह परिवार, फिर उस समय खुजली (scabies) की बीमारी फैली हुई थी, सो घर के लोग इससे भी परेशान, मैं कहीं पर भी ध्यान नहीं दे पा रहा था | नई परिस्थिति से मैं बुरी तरह घबरा गया | बैंक ने मेरे निवेदन पर फरवरी, 76 में वापस इंदौर ट्रान्सफर कर दिया |

अपडेट दिनांक 21.10.21 (Part-III)
                                              सन 1976-1981

3.एक्सर साईज़ से मेरा जुड़ना : 1975 में मेरा ऑफिसर के रूप में प्रमोशन हुआ और 1976 में देवास ट्रान्सफर हो गया | मैं अपना परिवार और छोटे भाई को लेकर देवास चला गया, शेष परिवार इंदौर ही रहा | इसी बीच पिताजी को लंग कैंसर हुआ और उन्हें एम. वाय. एच. हॉस्पिटल में भर्ती किया गया | मैं दिन में बैंक में कार्य करता, शाम को इंदौर आता और रात को हॉस्पिटल में सोता और सुबह फिर देवास के लिए ट्रेन से रवाना हो जाता | दो जगह परिवार, फिर उस समय खुजली (scabies) की बीमारी फैली हुई थी, सो घर के लोग इससे भी परेशान, मैं कहीं पर भी ध्यान नहीं दे पा रहा था | नई परिस्थिति से मैं बुरी तरह घबरा गया | बैंक ने मेरे निवेदन पर फरवरी, 76 में वापस इंदौर ट्रान्सफर कर दिया |

श्री विजयवर्गीय (वल्लभ) ने फिर मुझे सलाह दी कि अब तो दादा से मिल ही लो और क्लब भी जॉइन कर लो, एक्सरसाईज़ करोगे, तो ध्यान समस्याओं से हटेगा | मुझे भी सुझाव ठीक लगा, सो मैं दादा के पास पहुँच गया | दादा ने कह दिया आजशाम से ही आ जाओ |

और इस तरह मेरा दादा के साथ क्लब में एक्सरसाईज़ का सफर फरवरी 1976 से शुरू हुआ | दादा ने फरवरी से सितंबर तक अब्डोमन एक्सरसाईजेस दी ताकि पाचन (digestion) ठीक हो और मोशन भी ठीक रहे | अक्टोबर,76 से दादा ने इन्स्टृमेंटल एक्सरसाईजेस देना भी शुरू किया |

दादा पूरे वीक का एकसरसाईज़ का चार्ट देते और डाइट क्या लेना है यह भी बताते | शनिवार को मुझसे प्रोग्रेस रिपोर्ट लेते और एक्सरसाईज़ चार्ट में फेर बदल करते और डाइट में आवश्यक चेंज भी करते |

5. दादा ने आध्यात्म से जोड़ा: करीब-करीब 3 साल के बाद दादा ने मुझे रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित दो पुस्तकें- The Gospel of Sri Ramkrishna और Sri Ramkrishna The Great Master पढ़ने के लिए सलाह दी | दादा इन दोनों किताबों को कई बार पढ़ चुके थे और उनके लिए ये गीता या बाईबिल की तरह थीं | दादा ने तो इन किताबों में दिए गए निर्देशों को अपने जीवन में आत्मसात कर लिया था | मुझे कई बार आश्चर्य होता था जब वे इन किताबों से पेज नंबर और पैराग्राफ नंबर के साथ दादा रिफ्रेन्स देते थे | उनकी 100 पेज रोज पढ़ने की जो आदत थी |

पहले तो इन पुस्तकों को पढ़ने में मन ही नहीं लगता, क्योंकि कुछ समझ में ही नहीं आता था | धीरे-धीरे आध्यात्मिक शब्दावली समझ में आने लगी, तब अर्थ भी थोड़ा-थोड़ा समझ में आने लगा |

मेरे स्वभाव और कमजोरियों को देखते हुए दादा अक्सर मुझे ‘The Gospel of Sri Ramkrishna’से यह कहानी सुनाते थे, जो इस प्रकार है :-

A Devotee: “Sir, if a wicked man is about to do harm, or actually does so, should we keep quiet then?
Master (Sri Ramkrishna): “A man living in society should make a show of tamas (anger) to protect himself from evil-minded people. But he should not harm anybody in anticipation of harm likely to be done to him.”

“Listen to a story. Some cowherd boys used to tend their cows in a meadow where a terrible poisonous snake lived.

Everyone was on alert for fear of it. One day a Brahmachari (monk) was going along the meadow. The boys ran to him and said: ‘Revered sir, please do not go that way. A venomous snake lives over there.’

‘What of it, my good children?’ said the Bramachari. ‘I am not afraid of the snake. I know some mantras.’ So saying, he continued on his way along the meadow. But the cowherd boys, being afraid, did not accompany him.

In the meantime the snake moved swiftly toward him with upraised hood. As soon as it came near, he recited a mantra, and the snake lay at his feet like an earthworm. The Brahmchari said: ‘Look here. Why do you go about doing harm? Come, I will give you a holy word. By repeating it you will learn to love God. Ultimately you will realize Him and so get rid of your violent nature.’ Saying this, he taught the snake a holy word and initiated him into spiritual life.

The snake bowed before the teacher and said, ‘Revered sir, how shall I practice spiritual discipline?’ ‘Repeat sacred word’, said the teacher, and do not harm to anybody.’ As he was about to depart, the Brahmchari said, ‘I shall see you again.’

“Some days passed and the cowherd boys noticed that snake would not bite. They threw stones at it. Still it showed no anger; it behaved as if it were an earthworm.One day one of the boys came close to it, caught it by the tail, and, whirling it round and round, dashed it again and again on the ground and threw it away. The snake vomited blood and became unconscious. It was stunned. It could not move. So thinking it is dead, the boys went their way.

अपडेट दिनांक 22.10.21 (Part IV)
“Late at night the snake regained consciousness. Slowly and with great difficulty it dragged itself into its hole; its bones were broken and it could scarcely move. Many days passed. The snake became a mere skeleton covered with the skin. Now and then, at night, it would come out in search of food. For fear of the boys it would not leave its hole during the day-time. Since receiving the sacred word from the teacher, it had given up doing harm to others. It maintained its life on dirt, leaves or the fruit that dropped from the trees.

“About a year later the Brahmchari came that way again and asked after the snake. The cowherd boys told him that it was dead. But he could not believe them. He knew that the snake would not die before attaining the fruit of the holy word with which it had been initiated. He found his way to the place and, searching here and there, called it by the name he had given it. Hearing the teacher’s voice, it came out of its hole and bowed before him with great reverence.

“How are you?’ asked the Brahmachari. ‘I am well, sir, replied the snake. ‘But’, the teacher asked, ‘why are you so thin? The snake replied: ‘Revered sir, you ordered me not to harm anybody. So I have been living only on leaves and fruits. Perhaps that has made me thinner.’

“The snake had developed the quality of sattva; it could not be angry with anyone. It had totally forgotten that the cowherd boys had almost killed it.”

“The Brahmchari said: ‘It cannot be mere want of food that has reduced you to this state. There must be some other reason. Think a little.’ Then the snake remembered that the boys had dashed it against the ground. It said: Yes, revered sir, now I remember. The boys one day dashed me violently against the ground. They are ignorant, after all. They did not realize what a great change had come over my mind. How could they know I would not bite or harm anyone?’

The Brahmchari exclaimed: ‘What a shame! You are such a fool. You don’t know how to protect yourself. I asked you not to bite, but I didn’t forbid you to hiss. Why didn’t you scare them by hissing?

“So you must hiss at wicked people. You must frighten them lest they should do you harm. But never inject you venom into them. One must not injure others.

6. दादा की उपयोगी सीखें: (i) उक्त कहानी दादा ने एक बार नहीं कई बार बताई और अक्सर दूसरों को भी सुनाया करते थे | इस कहानी ने मेरे जीवन पर बहुत ज्यादा प्राभाव डाला और मुझे निडर बनने में बहुत सहायता की | इसके कारण मैं अपनी बात को निडरता से दूसरों के सामने रखने लगा और धीरे-धीरे स्पष्टवादिता (straightforwardness) कब मेरे स्वभाव का हिस्सा बन गई, मुझे पता ही नहीं चला | मेरे व्यवहारिक जीवन में इस कहानी की सीख बहुत काम आई और आज भी आ रही है | अधिकांश लोग मेरी स्पष्टवादिता को पसंद करने लगे, चाहे फिर वो मेरे दोस्त हो या दुश्मन |

(ii) दादा ने मुझे यह बात भी बहुत अच्छी तरह समझाई कि सीधा और सरल स्वभाव हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि हमें ईश्वर प्रदत्त एक गुण या शक्ति है | बस केवल हमें अपने आप को दूसरों से कैसे सुरक्षित रखें, यह आना चाहिए |

(iii) दादा की एक और सीख जीवन में बहुत काम आई, वह है विवेक (wisdom) का उपयोग | वे कहते थे कि जब भी हम किसी विषय या समस्या पर निर्णय लें, तो हमें हमेशा अपने विवेक का उपयोग करना चाहिए | विवेक हमें यह बताता है कि क्या गलत है और क्या सही | वह यह भी कहते थे – All intelligent people are not wise, but all wise people are intelligent.

(iv) दादा ने यह भी सिखाया कि ईश्वर ने हमें बुद्धि और हृदय दोनों दिए हैं | जिन विषयों से भावुकता (emotions) जुड़ी हुई हों, वहाँ हमें अपने हृदय का उपयोग करना चाहिए और जहां सांसरिक विषयों पर व्यावहारिक निर्णय लेने हों, वहाँ अपनी बुद्धि का ही उपयोग करना चाहिए |

यदि हम ऐसा नहीं कर पाते हैं तो अक्सर हमसे ऐसे निर्णय हो जाते हैं, जिनके लिए हमें बाद में पछताना पड़ता है | जीवन में पारिवारिक और सांसारिक निर्णय लेने में इस सीख से बहुत मदद मिली और कई बार विकट परिस्थितियों में भी मैं सही निर्णय ले पाया |

7. दादा ने अब पाप होने से बचाया: हमारे दो बच्चे, एक बेटी और बेटा हो चुके थे, जब कि मेरे कई दोस्तों की तो तब तक शादी भी नहीं हुई थी | कई बार शर्म भी आती थी | जब 1976 में तीसरे के आने की आहट हुई तो हमें चिंता हुई, और हम कोई गलत निर्णय लेते, इससे पहले दादा से इस विषय में चर्चा हुई, तो दादा ने समझाया कि नहीं ऐसा करना ठीक नहीं होगा | और हमसे एक पाप होते-होते बचा |


नोट: (संस्मरण का Part - V) कल पोस्ट किया जाएगा ) 



संस्मरण क्र.34/जोहेर/(1)

October 17, 2021
संस्मरण क्र.34/जोहेर/(1)

I met Dada in the year 2016 when I was 14 years old. I was obese, stubborn and like a rotten egg. I was indignant too.

For a year and half I tried, I tried my best to avoid exercises. I was irregular and had an unhealthy lifestyle. I had gained so much weight that I was even unable to put on buttons of my shirt.

But gradually, Dada transformed me in to new person with good personality.

I started taking interest in exercises. I also found that Dada made me a better and much improved version of myself. Dada always wanted our good overall progress.

For Dada development was physical, intellectual, moral and spiritual. He also used to say that physical, intellectual, moral and spiritual practices should go hand-in-hand.

After joining Bengali Club I came to know what life is. Dada always said – “Live your life under the light of your own Soul.”I believe he was close to our hearts and closer to our Souls.

“Zohair”

दादा के बारे में महत्वपूर्ण विचार और उनके उपयोगी उद्गार – Important thoughts about Dada and his Useful quotes

  • “Dada transformed me in to new person with good personality.”
  • “Dada made me a better and much improved version of myself.”
  • “Dada always wanted our good overall progress.”
  • "For Dada development was physical, intellectual, moral and spiritual."
  • "Dada also used to say that physical, intellectual, moral and spiritual practices should go hand-in-hand."
  • "After joining Bengali Club I came to know what life is."
  • "Dada always said – “Live your life under the light of your own Soul.”

संस्मरण क्र.33/उमय हनी बादशाह/(1)

October 16, 2021
संस्मरण क्र.33/उमय हनी बादशाह/(1)

6 years back, in 2015 I joined Bengali Club.I joined Club because I was prone to have diabetes. At that time I was a bit lazy and irregular. I had also gained weight over the years.

First two years, I was not very much into the Club. But after passing my 12th Examination, when I took drop after school; that was the turning phase of my life.

Dada not only made me work hard but also taught me a lot about the Health and Fitness.

I attended Club without any gap. From that time till last lock down I got to know a lot from Dada and that would be enough for me to always remember Dada for lifetime.

“Umae Honey Badshah”

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दादा के बारे में महत्वपूर्ण विचार और उनके उपयोगी उद्गार – Important thoughts about Dada and his Useful quotes



  • First two years, I was not very much into the Club. But after passing my 12th Examination, when I took drop after school; that was the turning phase of my life.
  • Dada not only made me work hard but also taught me a lot about the Health and Fitness.
  • I attended Club without any gap.
“Umae Honey Badshah”



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